श्री गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु माने जाते हैं। इनके जन्मदिवस को गुरु पर्व अथवा प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। (जोकि वर्तमान पाकिस्तान में है।) इनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मेहता कालूचंद और माताजी का नाम तृप्ता देवी था। इनके माता-पिता खत्री जाति के थे और बड़े धार्मिक थे। छोटी उम्र से ही गुरु नानक का झुकाव अध्यात्म की ओर था और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनके मन में गहरी करुणा थी। एक बच्चे के रूप में गुरु नानक बेहद जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे और उनके पास कई प्रश्न होते थे। वह अक्सर जीवन की प्रकृति और ईश्वर के अस्तित्व पर विचार करते हुए घंटो बिताते थे। 7 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया और जल्द ही सबको उनकी असाधारण बुद्धि का परिचय मिलना शुरू हो गया। उन्हें सांसारिक गतिविधियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे अधिकतर आध्यात्मिक चिंतन करते हुए अकेले में समय बिताया करते। 13 वर्ष की आयु में गुरु नानक जी का जनेऊ संस्कार हुआ जो हिंदू परंपरा में लड़कों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान था लेकिन गुरु नानक ने पवित्र जनेऊ पहनने से इंकार कर दिया यह समझाते हुए कि उन्होंने बाहरी प्रतीको और अनुष्ठानों से परे भगवान के साथ एक गहरा संबंध बनाया है। इस घटना से उनके आध्यात्मिक जागरण की शुरुआत हुई और पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं से उनके दूर रहने का पता चलता है। जब वे 20 वर्ष के हुए तो गुरु नानक जी ने माता सुलखनी से शादी की और उनके श्री चंद और लख्मी चंद नाम के दो बेटे हुए। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद गुरु नानक जी ने अपने आध्यात्मिक समझ को गहरा करने के लिए खुद को समर्पित करना जारी रखा। वह अक्सर लंबी यात्राओं पर जाते थे विभिन्न पवित्र स्थानों का दौरा करते थे और विभिन्न धर्मों के विद्वानों और धार्मिक गुरुओ के साथ विचार विमर्श करते थे।
ऐसे ही अपनी एक यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी 3 दिन और रात के लिए गायब हो गए लोगों ने सोचा कि वह नदी में डूब गए हैं। लेकिन 3 दिन बाद वह एक तेजस्वी चेहरे के साथ फिर से प्रकट हो गए और उन्होंने गंभीर शब्दों में कहा "कोई हिंदू नहीं है कोई, मुसलमान नहीं है।" इस अनुभव ने उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि केवल एक दिव्य सत्य है जो सारी धार्मिक सीमाओं से परे है। अपने आध्यात्मिक अनुभवों और प्रेम, शांति और समानता के विचारों की इच्छा से प्रेरित होकर गुरु नानक जी ने एक नया धार्मिक आंदोलन शुरू किया। उन्होंने "सिखों" के रूप में पुकारे जाने वाले अपने शिष्यों को इकट्ठा किया जिसका अर्थ है "छात्र" या "साधक" जिन्होंने उनकी शिक्षाओं का पालन किया। गुरु नानक देव जी ने ध्यान, निस्वार्थ सेवा और सभी मनुष्यों के साथ उनकी सामाजिक स्थिति या धार्मिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समान व्यवहार करने के महत्व पर जोर दिया। गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन काल मे कई लंबी लंबी यात्राएं की जिन्हें सामूहिक रूप से उनकी उदासी के रूप में जाना जाता है। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने मक्का, बगदाद, तिब्बत और श्रीलंका जैसे स्थानों का दौरा किया और अपने प्रेम और एकता के संदेश को जगह-जगह फैलाया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के साथ संवाद किया और धार्मिक भाईचारे की वकालत की और उस समय प्रचलित सामाजिक भेदभाव को चुनौती दी। जैसे-जैसे गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को लोकप्रियता मिलती गई समाज पर उनका प्रभाव बढ़ता चला गया। उन्होंने काव्यात्मक रूप में सुंदर भजनों की रचना की जिन्हें बाद में सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में संकलित किया गया। गुरु नानक देव जी का दर्शन "इक ओंकार" की अवधारणा के इर्द-गिर्द घूमता है जिसका अर्थ है "एक ईश्वर" और एक धार्मिक और सच्चा जीवन जीने का महत्व। गुरु नानक जी का जीवन उनकी शिक्षाओं जैसा ही था। उन्होंने कठोर जाति व्यवस्था को सिरे से खारिज कर दिया और महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया। उन्होंने लंगर (सामुदायिक रसोई) की शुरुआत की जहां सभी जातियों और पृष्ठभूमि के लोग सभी सामाजिक बाधाओं को तोड़कर एक साथ एक पंगत में बैठकर भोजन कर सकते थे। प्रेम, शांति और समानता का प्रचार करते हुए गुरु नानक देव जी का 22 सितंबर 1539 करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में निधन हो गया। अपने मृत्यु से पहले उन्होंने अपने आध्यात्मिक पथ की निरंतरता सुनिश्चित करते हुए श्री गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। आज, गुरु नानक देव जी की शिक्षाए दुनियाभर के लाखों सिखों को प्रेरित करती हैं। प्रेम समानता और एकता का उनका संदेश आज भी प्रासंगिक बना हुआ है और इसमें अभी भी एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और करुणामय दुनिया बनाने की क्षमता है।